Lahrata Chand - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

लहराता चाँद - 1

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

लहराता चाँद, (उपन्यास)

सिर दर्द से फटा जा रहा था। आँखें भारी-भारी -सी लग रही थी। वह उठने की कोशिश कर रही थी पर उसकी पलकें हिलने से इनकार रहीं थीं। मुँह से पीड़ा भरी आवाज़ निकल रही थी। शरीर कष्ट से तड़प रहा था। आँखों से पानी निकलकर धूल में मिल रहा था। नाक से गरम साँसों के साथ पानी भी निकलने लगा था। आस-पास कहीं से एक अजीब सी दुर्गंध आ रही थी। वो दुर्गंध नाक से होकर फेफड़े पर असर कर रही थी, गाढ़े रसायन जैसी गंध थी वह। जैसे कि वह गंध आस-पास किसी नाली से या कोई रसायन की फैक्टरी से आ रही थी। उस गंध के असर से वहाँ ज्यादा समय रुकना मुश्किल था। उसकी आँख और नाक के उपर भी मक्खियाँ भिन-भिना रहीं थीं। अनन्या को ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कि वह गंदी नाली उसके आस-पास ही कहीं है।

उसने मुश्किल से पलकें उठा कर देखने की कोशिश की लेकिन मक्खियाँ उसकी पलकों पर से हटने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं। उसने मक्खियों को भगाने के लिए हाथ उठाना चाहा पर उसके हाथ अपनी जगह से हिल ही नहीं रहे थे। आखिरकार उसने मुश्किल से आँखें खोलकर देखा। चारों तरफ गाढ़ा अँधेरा छाया हुआ था। आस-पास कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। अनन्या ने हिलने की कोशिश की मगर शरीर साथ नहीं दे रहा था। हाथ को आगे बढ़ाना चाहा, यूँ महसूस हुआ कि जैसे हाथों को किसी मजबूत रस्सी या किसी चीज़ से कसकर बाँध दिया हो। अनन्या ने अपने हाथों को छुड़ाने का प्रयत्न किया मगर असफल रही। आवाज़ देकर मदद के लिए पुकारना चाहा लेकिन उसके मुँह को भी कपड़े से बाँध दिया गया था। उसे समझ में आ गया कि उसे किसी ने हाथ-मुँह बाँधकर किसी सुनसान जगह छोड़ दिया है ।

अनन्या खुद के बँधे हुए हाथों को खोलने को बार-बार कोशिश करती रही लेकिन रस्सी खोलने में असमर्थ रही। आखिरकार थककर यूँ ही पड़ी रही। वह याद करने की कोशिश की कि वह यहाँ आई कैसे? क्या हुआ था उसके साथ? उसने चारों ओर नज़र घुमाई। न जाने समय क्या होगा? जरूर रात का समय होगा, नहीं तो इतनी गहन अंधकार? कहीं से तो थोड़ी सा उजाला दिखाई पड़ता। अनन्या कोशिश करके भी हाथों को मुक्त करने में नाकामयाब रही । वह सोच में पड़ गई कि वह यहाँ पहुँची कैसे?

जहाँ तक उसे याद है वह शाम को 7 बजते ही ऑफिस से निकल गई थी। वहाँ से एक ऑटो में बैठी। रास्ते में बहन की फरमाइश याद आई, "दीदी ऑफिस से आते वक्त मेरे लिए पिंक कलर की लिपस्टिक ले आना। बाकी सब कलर है मगर तुम्हें पता है न पिंक कलर मेरा फेवरट कलर है और दीदी कल स्कूल में फैशन शो भी है, ड्रेस से मैचिंग हाई हील्स भी चाहिए। ले कर आना प्लीज।"

- "अवन्तिका तुम भी न! खुद क्यों नहीं ले आती? मुझे क्यों बता रही है? मेरी ऑफिस में काम है, लेट भी हो सकता है, तुम खुद ले आओ न बाजार से।" अनन्या को अपने ऑफिस में देरी होने की आशंका थी इसलिए उसने अवन्तिका को ले आने को अनुरोध किया।

- "दीदी प्लीज, मुझे और भी बहुत क् क् क..काम है। फैशन शो के लिए रिहर्सल भी करना है। मुझे तो जीतना भी है न? अगर मैं हार जाऊँ तूतू.. तुम्हें अच्छा लगेगा क्या?" कॉलेज के लिए तैयार होते हुए अवन्तिका ने मुँह फुलाकर रुक-रुक कर पूछा। अवन्तिका को बचपन से रुक-रुक कर बोलने की आदत है। उसकी इस आदत की वजह से उसके साथ के बच्चे उसे चिढ़ाते रहते और वह रोते हुए घर आकर अनन्या से शिकायत करती। यही कारण है कि अवन्तिका कभी ज्यादा दोस्त नहीं बना सकी। कुछ गिने-चुने दोस्तों के अलावा उसकी कोई दोस्त नहीं थे। बचपन से लेकर अब तक अनन्या ही उसकी बहन, माँ और दोस्त रही है। अवन्तिका को अपनी दीदी अनन्या पर पूरा विश्वास और प्यार है, इसलिए वह अनन्या को माँ की तरह मानती है और हर छोटी से छोटी बात उससे बताती है।

ऑफिस के लिए निकल रही अनन्या अवन्तिका की ओर देखकर रुक गई - "अवन्तिका देख! ड्रेस को ठीक से पहन लो, देखो तो कैसे कमर से ऊपर उठ गई है, थोड़ा सा ढँक लिया करो।"

- "दीदी आप जानती हो मैं रैंप वॉक के लिए चुनी गई हूँ फिर मुझे फैशन का ख्याल भी रखना पड़ेगा न। और जीन्स पर थोड़ा पेट दिखे भी तो क्या हो गया। आप तो दादीअम्मा-सी बात करती हो। यह आज का फैशन है।"

तभी अनन्या ने कहा - "अच्छा बाबा ठीक है, लेकिन गलत इरादे वाले लोग हमारे चारों तरफ फैले हुए हैं जरा सँभलकर रहना।"

- "ठीक है दीदी। फिर आते वक्त मेरा सामान आप ले आओगी न?"

- "ठीक है, मैं ले आउँगी। पर देर हो गई तो क्या करोगी?"

- "दीदी प्लीज ले आओ न।"

अनन्या ने सोफ़े पर बैठ पेपर पढ़ते हुए संजय के पास आकर कहा - पापा नाश्ता टेबल पर रख दिया है, ठंड़ा हो जाएगा जल्दी से खा लेना।

- अरे बेटा! तुम आज इतनी जल्दी तैयार हो गई ? काम का प्रेशर ज्यादा तो नहीं है न? दुर्योधन से बात करूँ?" अखबार को फोल्ड करके टेबल ऊपर रखते हुए कहा।

- नहीं पापा, ऐसी कोई बात नहीं। मुझे ऑफिस में कुछ काम है, इसमें अंकल क्या कर सकते हैं?"

- अच्छा ठीक है, अपना ख्याल रखना।"

- जी पापा, शाम को लौटते वक्त देर भी हो सकती है, खाना खा लेना, मेरा इंतज़ार मत करना।

- अच्छा! जैसे कि मेरे देर होने पर तुम खाना खा लेती हो। मुस्कुराते संजय ने कहा।

ऑफिस जाती हुई अनन्या संजय की बात सुनकर रुक गई - पापा, प्लीज। ठीक है मैं टाइम पर घर पहुँचने की कोशिश करुँगी।"

- नाश्ता ठीक से किया? भोजन के लिए डब्बा रख लिया है ना?" संजय ने उसके पीछे दरवाज़े तक आकर पूछे।

- हाँ पापा। डब्बा रख लिया है अब मैं चलूँ?

- ठीक है पर ज्यादा देर मत करना। अंधेरा होने से पहले घर पहुँच जाना।

- हाँ पापा! 👍👍

अनन्या ऑटो को रोक कर बैठी और ऑफिस के लिए निकल गई। पूरा दिन काम में व्यस्त रहने के बावजूद काम इतना ज्यादा था कि 7 बजने से पहले ऑफिस से निकलना संभव नहीं हुआ। शाम को 7 बजे ऑफिस से बाहर निकलकर वह ऑटो में सवार हुई। कुछ दूर जाने के बाद अवन्तिका की फरमाइशें याद आई। ऑटो को रास्ते के एक ओर रोकने को कहा - "भैया, मैं अभी आती हूँ यही पर रुको। बस दो मिनटों में आती हूँ।"

जाते हुए अनन्या फिर अचानक कुछ सोचकर पीछे वापस आ गई। मन ही मन कहा, 'अगर सामान खरीदने में देर हो जाए तो तब तक रिक्शा रोक रखना ठीक नहीं।' वह वापस आकर ऑटोवाले से कहा, "भैया आप पैसे लो, मुझे देर हो सकती है। मैं दूसरा ऑटो ले लूँगी।" पैसा देकर पास वाले दुकान में चली गई। वहाँ से लिपस्टिक, हाई हिल वाले जूते और खुद के लिए एक पर्स खरीदकर दुकान से तंग गलियों के बीच वापस लौट रही थी। कुछ अँधेरा होने लगा था। दुकान मेन रोड से कुछ अंदर होने से वह रास्ता एक गली से होकर गुजरता है। वहाँ लोगों की आवाजाही बहुत कम थी। वह अपना ऑफिस बैग कांधे पर लटकाए दूसरे हाथ में सामान लेकर उस रास्ते से हाइवे की ओर बढ़ने लगी। कुछ ही दूर चली थी कि बिलकुल उसी वक्त सिर पर किसी ने प्रहार किया फिर क्या हुआ उसे कुछ याद नहीं। फिलहाल तो वह किसी जगह दयनीय अवस्था में बँधी पड़ी हुई है। उस जगह से यहाँ इस जगह कैसे पहुँची, पता नहीं।

"न जाने कौन लोग हैं और क्या चाहते हैं मुझसे।" अनन्या सोचने की कोशिश कर रही थी। क्या कोई पुराना बदला लेने या पैसों के लिए उसे बंदी बनाया है? ये कौन सी जगह है? वह मुंबई में है या किसी दूसरी जगह? आखिर उसका अपहरण क्यूँ किया गया और किसलिए? अपहरण कर्ता चाहते क्या हैं? उसके मन में सवाल पर सवाल उठ रहे थे। मन में उठते प्रश्नों का उसके पास कोई जवाब नहीं था। भूमि पर पड़े-पड़े न जाने कितना वक्त निकल गया था।

रात के अँधेरे में चाँद की हलकी-सी किरणें चारों तरफ फैली हुई थीं। उस रोशनी में धुंधले-से कुछ पेड़-पौधे नज़र आ रहे थे। अनन्या की हालत को नज़रअंदाज़ करते चाँद बादलों के संग लुका-छुपी खेल रहा था। चौथ के चाँद की चाँदनी से आधा संसार तो वैसे ही अँधेरे में डूबा हुआ था। समय का भी पता नहीं चल रहा था। न जाने कब से वह इस अंधरे में एक अनजान जगह पर पड़ी है। पैरोँ पर कुछ हलचल महसूस हुई। वह डर से काँप गई, साँप या कोई जंतु? जोर से आँखे बंदकर बिना हिले चुपचाप पड़ी रही। कुछ समय बाद रेंगते हुए कोई जंतु उससे दूर चला गया। पत्तों के बीच से कुछ सरसराने की आवाज़ भी बंद हो गई। अनन्या ने राहत की साँस ली ही थी कि चमगादड़ की फड़फड़ाहट से उस जगह में सनसनी फैल गई।

भूख से उसके पेट में चूहे फुदकने लगे थे। जमीन से उठने के लिए हाथ भी सहयोग नहीं कर पा रहे थे। वह बहुत देर तक यूँ ही लेटी रही। मुँह का एक अंश जमीन से रगड़ रहा था। सांस लेते ही नाक में धूल-मिट्टी घुस रही थी। ऊपर से असह्य बदबू। कुछ और देर इस तरह पड़े रहने से बदबू से बेहोश होने की आशंका थी। अनन्या को उस दुर्गंध से उल्टी आने लगी, किसी न किसी तरह उठकर बैठने को प्रयास किया। पैर हिलते ही सूखे पत्तों की आवाज़ रात के सन्नाटे में अजीब-सी सुनाई देने लगी। वह समझ नहीं पा रही थी यह कौन-सी जगह है? न जाने कहाँ उसे कैद किया गया है? इन सवालों से परेशान हो कुछ ही समय में अनन्या की आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा और वह फिर से बेहोश हो गई।

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जब उसकी आँखें खुलीं सुबह होने को थी। सूरज अँधेरे को जीतकर उजाला का झंडा फहराने को तैयार था। उगते सूरज की रोशनी खिड़कियों के बीच से कमरे में आंशिक रूप में आ रही थी। उस थोड़ी-सी रोशनी में साफ़-साफ़ तो नहीं लेकिन धुंधला-सी कुछ चीज़ें दिखाई देने लगीं। और पहली-सी दुर्गन्ध नहीं थी। अनन्या को यह जगह पहले की जगह से कॉफी अलग लगी। उसे किसी कमरे में बंद किया गया है। शायद उसे बेहोशी की हालात में यहाँ लाया गया है। जहाँ बहुत समय से किसीका आना-जाना नहीं था।

कमरा धूल मिट्टी से भरा पड़ा था। टूटी हुई खिड़की से सूरज की रौशनी जब उसकी आँखों पर पड़ी वह वहाँ से हटने का असफल प्रयास की। जगह-जगह सूखे घास, आधी टूटी हुई शीशे की बोतल के अलावा लकड़ियाँ और टूटे-फूटे सामान बिखरे हुए थे। एक सामान भरी बोरी की तरह कोने में पड़ी मुश्किल से बँधी हुई वह हाथ पैर के सहारे किसी तरह बैठने में कामयाब रही। मुँह को कपड़े से बाँध दिया गया था। उसकी आँखें कमरे की चारों ओर घुमा ले आई। उसके दिमाग़ में एक ही सवाल क्यों? किस मकसद का अंजाम देने के लिए उसे अपहरण किया गया। इसमें किसीका हाथ हो सकता है? या कोई अन्य मकशद से ?

अचानक उसे उसके पिताजी और अवन्तिका की याद आई। सभी बहुत परेशान रहे होंगे। अवन्तिका ने रो-रो कर अपना बुरा हाल कर लिया होगा और पिताजी ने भी उसे ढूंढने के लिए आकाश-पाताल एक कर दिया होगा। अवन्तिका के कॉलेज में फैशन शो होने वाला था, जिसमें अवन्तिका भाग लेने को थी। फिर न जाने उसने कॉलेज में गई होगी कि नहीं। वह अनन्या से बहुत प्यार करती है, फिर उसकी गैरहाज़िरी में उसने शो को भी ठुकरा दिया होगा। रात को जब भी बिजली गुल हो जाती और अँधेरा छा जाता डर से अनन्या के गले लिपट जाती। जब भी बुखार आता तब पूरी रात उसका हाथ पकड़े रखती। माँ-सी मानती है वह अपनी बड़ी बहन को। उसकी आँखें भर आईं। अपनी हालत को देख दुख हुआ। वह न जाने वह कब से बेहोश पड़ी है ? कितने दिन बीते उसे भी पता नहीं। इन सारे प्रश्नों ने उसे परेशान कर दिया। अगर ये जगह पहले से अलग है तो उसे बेहोशी की हालात में कौन यहाँ लाया है? धीरे-धीरे सोचने की क्षमता खोने के साथ वह फिर से बेहोश हो गई।

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अनन्या "बाबुल का आँगन" पत्रिका की सहसंपादिका है। अनन्या के पिता संजय अग्रवाल के दोस्त दुर्योधन वर्मा पिछले 20 सालों से इस पत्रिका के मुख्य संपादक व निर्णायक रहे हैं। अनन्या पत्रकारिता में डिग्री हासिल करने के बाद दुर्योधन वर्मा के आग्रह पर उन्हीं के पत्रिका में सहसंपादक के पद पर कार्यभार सँभालने लगी। संजय की दो बेटियाँ हैं अनन्या और अवन्तिका जिन्हें वह जान से भी ज्यादा प्यार करते हैं।

संजय व रम्या अपनी दोनों बेटियों के साथ 20 साल पहले कोलकता छोड़ कर मुंबई में आकर बस गए। संजय की शादी कम उम्र में ही रम्या से हो गई थी। संजय कोलकाता के जानेमाने कॉलेज विद्याविहार में डाक्टरी की पढ़ाई करता था। उन दिनों रम्या इंजीनियरिंग की छात्रा थी। वह डिग्री के दूसरे साल में पढाई करती थी। संजय और रम्या दोनों एक ही कॉलेज के छात्र-छात्रा थे। एक ही कॉलेज होने से कभी कभार कॉलेज कैंटीन में दोनों का आमना-सामना हो जाता था।

रम्या के पापा राघवेंद्र केरल में सिविल इंजिनीरिंग की नौकरी करते थे। बाद में उन्हें कोलकाता तबादला कर दिया गया। इसी वजह से रम्या ने भी कोलकाता में ही डिग्री की शिक्षा प्राप्त की। कॉलेज के शुरुआत के दिनों में कॉलेज में रैगिंग होना स्वाभाविक था। एक दिन रम्या और अंजली कैंटीन में बैठे हुए थे। अंजलि और रम्या दोनों अच्छी सहेलियाँ थीं। दोनों पड़ोसी होने के नाते रोज़ साथ साथ कॉलेज आते थे। उस दिन भी एक साथ कैंटीन में बैठे हुए थे। तब एक छात्रों की टोली ने अंदर प्रेवश किया। वे सब रम्या और अंजली के टेबल से कुछ आगे बैठ गए।

उसी वक्त संजय कैंटीन में प्रवेश किया। वह कुछ ही कदम आगे बढ़ा था कि उस टोली में से किसी ने उसके पैर के सामने अपना पैर रख दिया जिसके कारण संजय लड़खड़ा कर नीचे गिर गया। तभी उसका हाथ पानी से भरा गिलास से टकराया और वह गिलास उछलकर रम्या के चेहरे पर लगा। रम्या के चेहरे पर गिलास की धार तेज़ गति से लगने से उसकी माथे से खून बहने लगा। लेकिन उस टोली की बदमाशी को रम्या ने देख लिया था, इसलिए उसने संजय को कुछ कहने के बदले उसे भूमि पर से उठाया और पानी दिया।

संजय रम्या के चेहरे से खून निकलते देख घबरा गया।

"सॉरी, सॉरी मैंने कुछ नहीं किया, सॉरी।" कहते हुए उसकी तुरंत ही पट्टी कराने फर्स्ट ऐड के लिए रम्या के मना करने के बावजूद उसे कॉलेज के प्रिंसिपल के पास ले गया।

अनन्या कुछ कहने की चेष्टा कर रही थी, लेकिन संजय ने उसे कुछ बोलने नहीं दिया। उसके घाव पर फूँक मारते हुए उसकी चोट पर मरहम लगाकर पट्टी कर दी।

बाहर आते ही अनन्या ने संजय से उन छात्रों को दिखाते हुए कहा, "मुझे पता है इसमें आपकी कोई गलती नहीं थी। उन छात्रों ने आपके पैर के सामने पैर रखते मैंने देख लिया था। इसमें आपका कोई कसूर नहीं।"

संजय के शिकायत से उन छात्रों की टोली को बुलाया गया और प्रिंसिपल के हवाले कर दिया। प्रिंसिपल सर् ने दुबारा गलती होने पर कॉलेज से बरखास्त करने की धमकी देकर उन्हें छोड़ दिया। उस घटना के बाद से संजय के दिल में रम्या के लिए प्यार जाग उठा। वह बस अनन्या को दूर से देखता और जब अनन्या की नज़र उस पर पड़ते ही नज़र फेर लेता। 👍👍

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संजय अपने माता-पिता, दादा-दादी के साथ रहता है। संजय की दादी, कैंसर से पीड़ित थी। डॉक्टर के अनुसार वह कुछ ही दिन की मेहमान थीं। वह अपनी इस बीमारी के बावजूद हमेशा खुशमिज़ाज रहती थी। उनकी जिंदगी के चार दिन में खुशियों से भरने के लिए घर के सभी सदस्य अपना प्रयास करते। और उन्हें कोई कष्ट न हो इस बात खूब ख्याल रखा। संजय इकलौती संतान होने से वह सभी का प्रिय था।

संजय के पिता सहदेव ने उनकी माँ की हर इच्छा को पूरी करने में जुटे थे। वे आखिरी दिनों में संजय की शादी देखने के लिए उतावली थी। सहदेव उनकी आखिरी इच्छा पूर्ण करने हर संभव प्रयास करने लगे। संजय की पढ़ाई पूरी होने में 2साल बाकी था। संजय दादी को बहुत प्यार करता था। दादी की आखिरी इच्छा पूरा करना अपना कर्त्तव्य समझता था। लेकिन जब उसकी शादी की बात चली तो संजय का दिल धड़कने लगा। उसे रम्या की याद आई। changes made

रम्या बहुत ही शर्मीली लड़की थी। अपनी किताबें और कॉलेज के अलावा उसकी जीवन में और कुछ मायने नहीं रखता था। माँ बाप की इकलौती संतान होने से वह अपने पिता-माता का बेटा बन कर उनकी बुढ़ापे का लाठी बनना चाहती थी। इसलिए यथा संभव पढ़ाई में डूबे रहती और दूसरे लोगों से दूर रहना पसंद करती थी। साधारण सी कुर्ती पैजामा में कॉलेज जाना फिर घर बैठकर पढ़ने के अलावा उसकी और कहीं ध्यान नहीं रहता था। वह 22 साल की उम्र में भी हमेशा चुप-चुप सी रहती थी। घर की जरूरतें और उसके बाबा की बीमारी ने उसे छोटी सी उम्र में ही बड़ा बना दिया। घर में बच्चों की ट्यूशन लेती जिससे उसका खुद के खर्चे का बोझ राघवेंद्रजी के ऊपर न पड़े। छोटा सा परिवार। कुछ साल पहले राघवेंद्र हॄद रोग बीमारी से ग्रसित हो गए। पहले जैसे फुर्ती से नौकरी कर पाना मुश्किल था। शरीर में ताकत और मनोबल की कमी से जूझने लगे। रम्या उनकी हालत खूब समझती थी, वह चाहती थी कि वह खूब पढ़ लिख कर उसके पिता का सहारा बने।

इधर संजय का हाल बेहाल था। एक हलके से हवा के झोंके ने उसकी जिंदगी बदल कर रख दी। रम्या कब संजय के दिल में बस गई संजय को पता न चला। बड़ी-बड़ी आँखों वाली रम्या, एक नज़र उठा कर झट से नज़र झुका देती उस लड़की को एक नज़र देखने, कॉलेज के एक पेड़ के नीचे घंटो इंतज़ार करता। कॉलेज आते-जाते संजय को देखते ही रम्या की दोस्त अंजली रम्या को हाथ से धीरे चिमटी देती थी और रम्या झट से एक नज़र उठाकर नज़र चुरा लेती। इससे ज्यादा कभी उन दोनों की चाहत आगे बढ़ नहीं पाई थी। 👍👍👍

संजय रात भर पलँग पर करवटें बदलता रहा। दादी के जाने से पहले संजय की शादी कराने के लिए संजय की माँ बाबूजी ने उस पर शादी का दवाब डालने लगे। बिना नौकरी के शादी के लिए वह बिलकुल तैयार नहीं था। लेकिन दादी की खातिर शादी के लिए राज़ी तो हो गया लेकिन जब लड़की देखने की बात होने लगी तब वह बिन पानी के मछली की तरह तड़पने लगा। शादी के लिए रम्या की रजामंदी भी जरुरी थी। उसके भी मन में शादी के लिए कई सारे उम्मीदें होंगी, 'ऐसे में क्या वह शादी के लिए हाँ कहेगी? अगर 'ना' कर दे तो ?' इस मीमांसा में उसकी नींद उड़ चुकी थी। सुबह किसी भी तरह रम्या से मिलने और अपनी दिल की बात बताने का फैसला किया। तभी उसे रम्या की सहेली अंजली की याद आई। अंजली को मनाकर रम्या से मिलने का मौका निकालना होगा। उसके मन में यह ख्याल आते ही वह बिना देरी किए किसी तरह अंजली का फ़ोन नम्बर प्राप्त कर अंजली को फ़ोन लगाया।

अंजली फ़ोन उठाते ही संजय "अंजली, मैं संजय।"

"संजय? "

" हाँ संजय, आप का सीनियर। उस दिन कैंटीन में काँच का गिलास... ।" अपना परिचय देते हुए उस घटना को याद कराया। तब तक अंजली समझ गई थी कि यह वही संजय है.... जो... मुस्कुराते कहा, "हाँ, मुझे याद है। तुमने मुझे कैसे याद किया?" संजय का फ़ोन जानकर उसका मन आनंद से उछल पड़ा। कॉलेज में छात्र-छात्राओं के बीच धडल्ले से बात होती है, कोई परम्परा का या जी, हाँ जैसे शब्दों का कोई स्थान नहीं था और कॉलेज का हीरो है संजय। जिसे देखते ही अंजली के दिल की धड़कन बंद हो जाती है जिससे बात करने कालेज की लड़कियाँ तरसतीं हैं उसका फ़ोन आना अंजली के लिए सपना था।

" कहाँ हो अभी? "

"कॉलेज में हूँ। क्यूँ? "

"अंजली, कुछ देर के लिए लाइब्रेरी आ सकती हो? तुमसे कुछ बात करनी है।"

"लाइब्रेरी! ठीक है, लेकिन क्या काम है?

"आ जाओ यहाँ आने के बाद बताता हूँ।" संजय ने कहा।

"ठीक है। पाँच मिनट में आ रही हूँ।" कहकर अंजली ने मोबाइल बंद कर दिया।👍👍

संजय कुछ ही देर में लाइब्रेरी पहुँचा। अंजली के क्लासेज खत्म हो चुकी थी, उसके मन में कई सारे प्रश्न थे। लेकिन सारे प्रश्न को विराम देकर वह लाइब्रेरी पहुँच गई।

- "अंजली, मुझे तुम्हारी मदद की जरुरत है। क्या मेरी मदद कर सकती हो?"

- "अगर मेरे लिए संभव है तो जरूर करुँगी, कहकर तो देखो, क्या बात है?"

- "मेरे पूरी बात सुनने के बाद मना मत करना प्लीज।" कहकर उसके सामने चेयर पर बैठ गया।

- "पहले बताओ तो सही।"

- "मेरे घर में मेरी शादी के लिए जल्दी कर रहे हैं और मैं, मैं रम्या से बहुत प्यार करता हूँ। लेकिन उसके मन में क्या है मैं नहीं जानता। क्या तुम रम्या से मिलने में मेरी मदद करोगी?" आँखें बंद करके एक साँस में कह दिया और अपने गाल पर हाथ रखकर दूर हट गया। डर था कहीं अंजली एक थप्पड़ न लगा दे।

अंजली की चुपी देख संजय उसके चेहरे को ध्यान से देखने लगा। अंजली संजय की अपील सुनकर एकदम चुप हो गई। वह यह सोचकर खुश थी कि संजय ने उसे फ़ोन करके बुलाया है तो संजय को मुझसे बात करनी होगी। संजय की बातों से पता चला उसके मन में रम्या के लिए प्यार है यह जानकर उसका दिल टूट गया। उसने फिर से पूछा, "समझी नहीं, फिर से बोलो?"

- "अंजली मैं रम्या से प्यार करता हूँ। उससे शादी करना चाहता हूँ।"

रम्या और अंजली बहुत अच्छी दोस्त हैं। दोनों हमेशा साथ में रहते हैं, स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई दोनों ने साथ-साथ पूरा किया। संजय का उनके चारों ओर घूमते देख अंजली मान लिया था कि संजय उसी से प्यार करता है। संजय के मुँह से रम्या से शादी का ख्याल सुनकर वह हतप्रभ रह गई। कुछ ही देर में वह खुद को सँभाल लिया। आखिर रम्या उसकी बचपन की सहेली है। दोनों एक दूसरे से कोई बात नहीं छिपाते लेकिन अंजली के मन में संजय के लिए प्यार उसने रम्या से छिपाये रखा था।

- "क्यों तुमने रम्या को कभी बताया नहीं?" अंजली ने पूछा।

- "नहीं, रम्या से कुछ कहने से पहले मुझे उसके काबिल बनना जरूरी है। खुद को उसके लायक बनाने का इंतज़ार कर रहा था और रम्या क्या चाहती है उसकी मर्ज़ी भी नहीं जानता। और मेरे घर में मेरी शादी के लिए तैयारियाँ चल रही हैं।"

"अभी तुम्हारी पढ़ाई भी खत्म नहीं हुई मुझे नहीं लगता रम्या मान जाएगी।"

वह अपने दादी के बारे में बताते हुए कहा - "अगर तुम मेरी मदद नहीं करोगी तो किसी और से मेरी शादी हो जाना तय है और मैं जिंदगी भर पछताते रह जाऊँगा।"

- "तो आप को अपने घर में बताना चाहिए कि आप किसी से प्यार करते हो। अंजली ने सीने पर पत्थर रख कर कहा।

- "नहीं जब तक रम्या हाँ न कहे तब तक मैं घर में बता नहीं सकता।"

- "तो तुम बताओ मुझे क्या करना है?"

- "अंजली प्लीज एक बार रम्या से मेरी बात करवा दो।" अनुनय करने लगा।

- "लेकिन रम्या अभी शादी के लिए तैयार नहीं है। वह खूब पढ़ना चाहती है।"

- "प्लीज अंजली मुझे एक बार बात करने दो।"

- "ठीक है, रम्या से बात करके देखती हूँ, अगर हाँ कहे तो बताऊँगी।"

- "किसी न किसी तरह रम्या को मना लो प्लीज?"

- "कोशिश करती हूँ। जल्दबाज़ी में बात बिगड़ सकती है। मुझे थोड़ा समय दो।" अंजली कुर्सी से उठी, "तुम बैठो मैं अभी आती हूँ।" कहकर वाशरूम में चली गई। वाशरूम के आईने के सामने खड़ी होकर अपने आँखों से बहते अश्रुओं को रुमाल से साफ़ करने लगी। उसकी आँखों के काज़ल धुलकर गालों से बहने लगा था। वह संजय को प्यार करती है इस बात को जाहिर भी नहीं कर पाई थी कि...

क्लासेज ख़त्म होने के बाद अंजली और रम्या कैंटीन में मिलते थे। संजय ने भी रम्या को पहली बार वहीँ देखा था। उसकी नज़र रम्या की नज़र से टकरा गई और पहली नज़र में ही दिल दे बैठा। अब अंजली एक ही कड़ी थी जिस ने दोनों को एक करने में सहायता कर सकती थी। अंजली को टेबल की तरफ आते देख संजय ठीक से बैठा।

अंजली कुछ देर चुप रहकर बोली - "रम्या मेरी बचपन की सहेली है। पर सहेली से ज्यादा हम दो बहनों जैसे पले बढ़े। मैं उसे बहुत अच्छी तरह जानती हूँ। वह बहुत शर्मीली और खुद में जीने वाली लड़की है। उसकी सारा ध्यान पढ़ाई में ही रहती है। उसे कभी प्यार व्यार में विश्वास नहीं। फिर भी तुम्हारे लिए मैं एक बार रम्या से बात करके देखूँगी। अगर वह असहज महसूस करती है या ना कह दे तो मैं कुछ नहीं कर सकती।"

- "ऐसा मत कहो अंजली, मुझे सिर्फ तुम ही मदद कर सकती हो। इस वक्त तुम्हारे अलावा मुझे कोई मदद नहीं कर सकता।"

- "कहा ना कोशिश करुँगी। उससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कर सकती।"

- "तुम्हारा एहसान मैं कभी नहीं भूलूँगा अंजली, थैंक्स, थैंक्स ए लॉट। कहते ख़ुशी से अंजली के हाथ चूम लिया।

आखिर अंजली की कोशिश रंग लाई। अंजली, रम्या को मनाने में कामयाब रही और एक दिन रम्या को कॉलेज की पार्क में ले आई। दोनों पार्क के लॉन पर बैठे ही थे कि संजय भी वहाँ पहुँचा।

- "हाय संजय।" अंजली ने संजय को ग्रीट किया, " मीट माय फ्रेंड रम्या। रम्या संजय मेरा सीनियर बैच यानि एम.बी.बी.एस में पढ़ता है।"

"अरे मैं कैसे भूल सकती हूँ, उस दिन कैंटीन में इन्हीं के बदौलत मुझे चोट जो लगी थी।" रम्या ने सिर पर चोट की जगह पर हाथ से सहलाते कहा। तीनों हँस पड़े।

- वैसे उस दिन बाद आपसे मिलने का अवसर आज ही प्राप्त हुआ। संजय ने मन ही मन 'लकी डे' कहकर आकाश को देखकर थैंक्स कहा।

संजय अपना परिचय देते हुए रम्या से कहा, "संजय, फाइनल ईयर एम.बी.बी.एस ।"

- "आई ऍम फर्श्ट ईयर इन इंजीनियरिंग।"

- "व्हिच ब्रांच?

- "कंप्यूटर साइंस।"

- "इट्स नाईस।

कुछ देर चुप्पी के बाद अंजली ने रम्या से कहा, "रम्या तू यही बैठ मैं लाइब्रेरी में किताब वापस करके आती हूँ। 5 बज चुकी है थोड़ी देर में लाइब्रेरी बंद हो जाएगी।"

- "रुक जाओ अंजली मैं भी आती हूँ।"

- "प्लीज बस 2 मिनट , आप लोग बात करो मैं अभी आई।" कहते हुए बड़े-बड़े कदमों से चली गई।

रम्या संजय के सामने काँटों पर बैठी असहज सी महसूस कर रही थी।

- "क्या आप को आपके नाम से बुला सकता हूँ?"

- रम्या मुस्कुराकर "हाँ" कहा।

संजय, विषय कैसे शुरू किया जाए इस उधेड़बुन में था।

- आप की स्टडीज कैसे चल रही है?"

- अच्छी चल रही है।"

- आप को पढाई में दिक्कत आए तो बताइए मैं मदद कर सकता हूँ।" अचानक बिना सोचे समझे कह दिया।

- आप कैसे? आप एम.बी.बी.एस हैं और मैं सॉफ्टवेर इंजीनियर? रम्या आश्चर्य से पूछा।

- अपनी जुबान को दाँत से दबाकर कहा, " हाँ..... वह... मेरा एक दोस्त है, जो सॉफ्टवेर इंजीनियर है, वह मदद कर सकता है इसलिए कहा।" खुद को रम्या की नज़र में शर्मिंदगी से बचाने के लिए कह दिया।

- ओह! अच्छा ठीक है जरूर।"

खुद को कोसने लगा, 'मैं भी ना किस कारण बुलाया और क्या बात कर रहा हूँ समझ में नहीं आ रहा। बस अंजली आ जाए।' कुछ ही देर बाद रम्या ने पूछा, "आपके उस दोस्त का नाम क्या है?"

अब तो संजय की हालत देखते बनती थी। उसका ऐसे कोई दोस्त था ही नहीं जो सॉफ्टवेर इंजीनियर पढ़ाई किया हो या कर रहा हो। फिर भी अब झूठ कह दिया है तो कुछ भरोसा दिलाना होगा सोचकर कहा, "आप नहीं जानती उसे, वह इस कॉलेज से नहीं है। आप का सीनियर है।" एक गलती को छुपाने के लिए झूठ पर झूठ बोलता गया। 'हे! भगवान कैसी मुसीबत में फँस गया मैं। क्या कहने आया था और क्या बोल रहा हूँ। कैसे कहूँ कि... इतना बेबस कभी महसूस नहीं हुआ। इस मुसीबत से बाहर कैसे निकलूँ?' मन ही मन सोच ने लगा। टॉपिक बदलते हुए कहा, "आप रहती कहाँ हैं? मतलब आप के पेरेंट्स और घर के बाकी सदस्य?"

- "यहीं थोड़े ही दूर पर लेकिन ... आप क्यूँ पूछ रहे हैं?"

- "बस यूँ ही," लड़कियाँ भी ना कितना शक करते हैं। "अंजली नहीं है, कुछ बात तो करनी है इसलिए। आप को कौन-सा विषय ज्यादा पसंद है?"

रम्या कुछ और कहती अंजली वापस आ गई।

- "हाई! क्या बातें हो रही है? दोनों को देखते हुए पूछा?" साथ ही संजय को इशारे से पूछी 'बात हुई?' संजय मुँह लटका कर 'ना' में जवाब दिया।

- "अंजली अब चलें?" रम्या अंजली से पूछी।

- "थोड़ी देर रुक जाओ यार, लाइब्रेरी की सीढ़ीयाँ चढ़ते उतरते थक गई हूँ। जरा साँस तो ले लूँ।" कह कर रम्या के घास पर बैठ गई।

अंजली ने संजय से प्रश्न किया, "संजय आप की दादी कैसी हैं?"

- "अब तक तो ठीक है।"

अंजली ने रम्या को संजय की दादी के बारे में सारी बात बतायी। संजय की शादी के बारे में भी बताया। रम्या चुपचाप सुनती रही।

- "ओह, संजय जी आपकी दादी के लिए मुझे दुःख है।" रम्या ने कहा।

संजय कुछ नहीं कहा। कुछ देर चुप्पी के बाद संजय उठकर खड़ा हुआ, "ओके गाइस अब मुझे चलना चाहिए ।"

- "एज यू विश संजय, बाय।" दोनों ने एक साथ कहा। बिदा लेकर वह यहाँ से चला गया। रास्ते में उसकी दिल और दिमाग में रम्या बसी हुई थी। उसे हवा में तैरने का एहसास हो रहा था। मन प्रफुल्लित जैसे कि कोई अल्हड़ हवा का झोंका अभी-अभी उसे छूकर गुजर गया हो।

मन शांत चेहरे पर मुस्कान, एक परिंदे की भांति पँख फैलाये नीले-नीले अंबर पर उड़ने को मन कर रहा था। मन ही मन सोचा शायद यही प्रेम का साइड एफक्ट है। वह समझ गया कि दिल की बात कहना इतना आसान नहीं लेकिन कहना तो पड़ेगा ही। रम्या को भी कुछ समय देना पड़ेगा। रम्या के साथ के हर पल उसे याद आ रहा था। उसकी सुंदर बड़ी-बड़ी आँखें, लाल गुलाब-से पतले होंठ, कान में झुमके, हवा से उड़ते बालों का चेहरे पर गिरना, एक हाथ से उन्हें पीछे करते हुए मुस्कुराना, उसके दिल पर जैसे तीर चल गया था।

कुछ ही दिनों में डॉ.संजय, रम्या और अंजली का अच्छा दोस्त बन गया। रम्या के जन्मदिन पर तीनों शहर से बाहर नदी के किनारे घूमने गए। संजय ने रम्या के लिए सरप्राइज प्लान किया था, उसी साँझ दिन और रात के अपूर्व संगम पर उगते हुए चाँद और डूबते हुए सूरज को साक्षी मानकर उसने रम्या से अपना प्यार का इज़हार कर दिया। फिर बड़ों की सहमति से दादी के सामने ही संजय व रम्या की शादी भी हो गई। शर्त थी कि रम्या पढ़ाई नहीं छोड़ेगी, और नौकरी भी करेगी। इसके लिए उसे कोई टोकेगा नहीं। और उसकी मर्जी से वही हुआ और संजय के घरवाले भी रम्या का स्वागत किये। दिल में संजय के प्रति प्रेम छुपाकर अंजली भी संजय और रम्या की हर ख़ुशी में शामिल हुई। उसके बाद अंजली पढ़ाई के बहाने शहर छोड़कर दूर हॉस्टल में रहने लगी फिर विदेश चली गई।